कल्पनाओं का सागर
कल्पना समुद्र सी लगती है जैसे कुछ मात्रा में जल निकालने पर समुद्र के जल की मात्रा में कुछ फर्क नहीं पड़ता | वैसे ही मेरी कल्पनाओं की नदियां एक विशाल सागर का निर्माण करती है |
क्या कल्पनाशील होना महत्वकांक्षी होना है ?
क्या बिना प्रयत्न के कल्पना सिर्फ कोरी कल्पनाएं हैं ?
क्या इन कल्पनाओं के जाल ने व्यक्ति को घेर लिया है ?
जिस प्रकार सागर में विष और अमृत दोनों हो सकते हैं | उसी प्रकार क्या यह कल्पनाएं मुझे रचनात्मकता दे सकती हैं या क्या मेरी मानसिकता को कल्पनाओं के जाल में फंसा सकती है ?
ऐसा लगता है कि कल्पनाओं के साथ ऊर्जा का भी विशेष संबंध है चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक | क्या यह मुमकिन है कि कोई व्यक्ति बिना कोई कल्पना किये अपना जीवन जी रहा हो ? तो उसका जीवन आनंदित होगा या व्यर्थ |
वैसे किसका जीवन व्यर्थ है इसका निर्धारण कौन कर सकता है ?
हम तो सिर्फ अपने जीवन को आनंद के साथ जी सकते हैं पर आनंद के साथ जीने की कला क्या है ?
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